दिल्ली की यमुना नदी में जहरीला पानी आना कोई नई बात नहीं है
दिल्ली की यमुना नदी में जहरीला पानी आना कोई नई बात नहीं है, लेकिन हर साल छठ पूजा से पहले इसका जहरीला रूप और खतरनाक हो जाता है।
दिल्ली की यमुना नदी में जहरीला पानी आना कोई नई बात नहीं है, लेकिन हर साल छठ पूजा से पहले इसका जहरीला रूप और खतरनाक हो जाता है। इस बार भी यमुना का पानी सफेद झाग से ढका हुआ है, जो एक बार फिर इसके प्रदूषण की गवाही दे रहा है। वनइंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, यमुना की स्थिति को देखने के लिए ग्राउंड ज़ीरो पर हालात का जायज़ा लिया गया। इस दौरान पता चला कि नदी का पानी इतना दूषित हो चुका है कि उसमें मछलियों और अन्य जलजीवों का जीवन कठिन हो गया है।
इस झाग का मुख्य कारण नदी में बहने वाला औद्योगिक कचरा और घरेलू सीवेज है, जो बिना किसी शोधन के सीधे यमुना में डाला जाता है। दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों में कई छोटे-बड़े उद्योगों का कचरा, जो भारी धातुओं और जहरीले रसायनों से भरा होता है, सीधे नदी में मिल जाता है। इसके अलावा, घरेलू कचरा और सीवेज के पानी में पाए जाने वाले फॉस्फेट्स और डिटर्जेंट्स भी नदी में झाग बनने का मुख्य कारण हैं।
दिल्ली में यमुना नदी का केवल 2% हिस्सा बहता है, लेकिन नदी में कुल प्रदूषण का 76% यहीं पर मिलाया जाता है। यह दिल्ली की जल निकासी और सीवेज प्रणाली की खामियों को उजागर करता है। वज़ीराबाद बैराज के पास नदी में सबसे ज्यादा प्रदूषण देखने को मिलता है, जहां शहर के कचरे का एक बड़ा हिस्सा नदी में बहाया जाता है।
यमुना का पानी न केवल पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहा है, बल्कि इससे इंसानों के स्वास्थ्य पर भी गंभीर प्रभाव पड़ता है। इस जहरीले पानी के संपर्क में आने से त्वचा संबंधी रोग, सांस की बीमारियाँ और अन्य गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं। इतना ही नहीं, पूजा-अर्चना और आस्था के मौके पर लोग इस पानी में स्नान भी करते हैं, जो उनके लिए बेहद खतरनाक साबित हो सकता है।
यमुना के प्रदूषण के मुख्य कारण
यमुना नदी के प्रदूषण के पीछे कई कारण हैं, जिनमें से मुख्य कारण हैं:
औद्योगिक कचरा: दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों में मौजूद कई छोटे-बड़े उद्योगों का कचरा बिना किसी शोधन के सीधे यमुना में बहाया जाता है। यह कचरा भारी धातुओं और जहरीले रसायनों से भरा होता है, जो पानी को विषैला बना देता है। रसायनों की वजह से पानी में ऑक्सीजन का स्तर कम हो जाता है, जिससे मछलियों और अन्य जलजीवों के लिए जीवित रहना मुश्किल हो जाता है।
घरेलू सीवेज और कचरा: शहर के घरों और अन्य सार्वजनिक स्थानों से निकला घरेलू सीवेज, जो कि साबुन, डिटर्जेंट और फॉस्फेट्स से भरा होता है, भी यमुना में मिल जाता है। इन रसायनों के कारण पानी में झाग बनने लगता है, जो देखने में तो साधारण लगता है, लेकिन वास्तव में यह खतरनाक प्रदूषण का संकेत है।
विकसित क्षेत्रों से जल का प्रवाह: यमुना नदी के किनारे बसे शहरी इलाकों का पानी भी सीधे नदी में बहाया जाता है, जो कि विभिन्न प्रकार के रासायनिक और जैविक प्रदूषकों से युक्त होता है। यह प्रदूषक न केवल पानी को जहरीला बनाते हैं, बल्कि यमुना के जलस्तर को भी प्रभावित करते हैं।
झाग बनने के पीछे की वजह
यमुना में झाग बनने के कई कारण होते हैं, जिनमें प्रमुख हैं:
फॉस्फेट्स और डिटर्जेंट्स: घरेलू सीवेज में मौजूद फॉस्फेट्स और डिटर्जेंट्स झाग बनने के लिए जिम्मेदार होते हैं। जब ये रसायन पानी में मिलते हैं, तो झाग के रूप में दिखाई देते हैं और पानी को पूरी तरह से दूषित कर देते हैं।
उद्योगों से निकलने वाले रसायन: नदी में मिलने वाले औद्योगिक रसायन भी झाग के निर्माण में भूमिका निभाते हैं। यह झाग केवल पानी की सतह पर ही नहीं रहता, बल्कि जल की गहराई में जाकर भी जहरीला प्रभाव डालता है।
यमुना की मौजूदा स्थिति
यमुना की स्थिति इस समय इतनी खराब हो चुकी है कि इसे पुनर्जीवित करना एक चुनौती बन गया है। नदी के पानी में ऑक्सीजन का स्तर इतना गिर चुका है कि मछलियों का जीवन कठिन हो गया है। कई जगहों पर तो मछलियों की मृत्यु की घटनाएं भी सामने आई हैं। इसके अलावा, पानी का जहरीलापन न केवल जलीय जीवन को प्रभावित कर रहा है, बल्कि इसका असर मानव स्वास्थ्य पर भी पड़ रहा है। आसपास के क्षेत्रों में बसे लोग जो इस पानी का उपयोग करते हैं, वे भी विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं का सामना कर रहे हैं।
यमुना के प्रदूषण को रोकने के उपाय
यमुना को इस स्थिति से बाहर निकालने के लिए कुछ ठोस कदम उठाए जा सकते हैं:
सख्त औद्योगिक नियम: औद्योगिक कचरे को सीधे यमुना में बहाने पर सख्त प्रतिबंध लगाए जाएं और इसके लिए जुर्माने और कड़ी सजा का प्रावधान किया जाए।
घरेलू सीवेज का शोधन: घरों और सार्वजनिक स्थानों से निकले सीवेज को शोधन के बाद ही नदी में छोड़ा जाए, ताकि पानी का प्रदूषण कम हो सके।
जागरूकता अभियान: लोगों को यमुना के प्रदूषण के खतरों के बारे में जागरूक करना और उन्हें स्वच्छता बनाए रखने के लिए प्रोत्साहित करना भी जरूरी है।
यमुना में सफेद झाग की चादर और उसकी जहरीली हालत दिल्ली की जल संकट और सरकार की नीतियों की विफलता की कहानी खुद बयां करती है। हर साल प्रदूषण को कम करने के लिए कई योजनाएं बनाई जाती हैं, लेकिन उन पर अमल न होने की वजह से यमुना की स्थिति में कोई सुधार नहीं होता।
निष्कर्ष
यमुना की स्थिति को देखते हुए यह स्पष्ट है कि हमें इसके संरक्षण के लिए गंभीरता से कदम उठाने होंगे। अगर समय रहते ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो यह न केवल जलीय जीवों के लिए बल्कि मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए भी बड़ा खतरा बन सकता है। यमुना को फिर से एक स्वच्छ और पवित्र नदी बनाने के लिए हर व्यक्ति की जिम्मेदारी है कि वह अपने स्तर पर सहयोग करे।
ज़रूरत है कि सरकार और आम लोग मिलकर यमुना को बचाने के लिए ठोस कदम उठाएं। अगर हम यमुना को प्रदूषण मुक्त बनाने में सफल होते हैं, तो न सिर्फ यह हमारी संस्कृति और आस्था को सुरक्षित रखेगा, बल्कि भविष्य की पीढ़ियों के लिए एक स्वच्छ और स्वस्थ पर्यावरण की दिशा में भी एक बड़ा कदम होगा।
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